कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥ दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥ ** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें। तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महं डेरा।। सहस https://shivchalisas.com